"क्या लिखूँ"
दिल की बेचैनी को हर्फ़ों में उकेरूँ कैसे?,
सिर्फ़ सिसकती बूँदें ही रह गई घटाओं में।
दिल की वादियों में ख़ुशनुमा एहसास नहीं,
मायूसी छा गई है अब तो फिज़ाओं में।
तेरी खनकती आवाज़ जो पराई हुई,
कुछ अलग सी ख़ामोशी घुल सी गई है हवाओं में।
सब कुछ होना है जब नीली छतरी वाले के मन से,
क्या माँगे कोई अपने लिए दुआओं में।
क्या लिखूँ आज मैं याद में तेरी की-
क़लम मेरी ख़ामोश है और अलफ़ाज़ सो गए हैं।
तेरी यादों की हरारत से जो सितारे कभी रौशन हुआ करते थे दिल में-
आज वो कहीं खो गए हैं।
तक़दीर लिखने वाले ने मेरे ही किसी करम का लेखा लिखा होगा-
जो चाहतों के दरमियाँ इस क़दर फ़ासले खड़े हो गए हैं।
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©RKP
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