पाठ-एक
कुछ और भी दूँ
भावार्थ:
1) 1) मन समर्पित, तन समर्पित ,
और यह जीवन समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।।
संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक छत्तीसगढ़ भारती के पाठ एक "कुछ और भी दूँ" से लिया गया है। इस कविता के रचयिता श्री रामावतार
त्यागी जी हैं।
प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में कवि मातृभूमि के प्रति अपना सब कुछ न्यौछावर करने की भावना व्यक्त किए हैं।
भावार्थ– कवि कहते हैं कि, हे मातृभूमि! मैं अपना तन, मन और जीवन तेरी रक्षा के लिए समर्पित करने के पश्चात भी चाहता हूँ की तुझ पर कुछ और न्यौछावर करूँ। अर्थात कवि के पास उसके प्राणों से भी बढ़कर यदि कोई चीज है तो उसे भी वह मातृभूमि के लिए अर्पित कर देना चाहता है।
(2) माँ तुम्हारा ऋण बहुत है,मैं अंकिचन,
किंतु इतना कर रहा ,फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब,
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण,
गान अर्पित, प्राण अर्पित,
रक्त का कण- कण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक छत्तीसगढ़ भारती के पाठ एक "कुछ और भी दूँ" से लिया गया है। इस कविता के रचयिता श्री रामावतार
त्यागी जी हैं।
प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में कवि कहते हैं कि वे धरती माँ के ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते।
भावार्थ– कवि कहते हैं कि हे धरती माँ! देश का मुझ पर बहुत बड़ा ऋण है। उस उपकार के सम्मुख में बहुत ही तुच्छ या छोटा हूँ किंतु फिर भी तुमसे यह विनती करता हूँ की जब मैं थाल में रखकर अपना मस्तक लाऊँ, तब मेरी इस तुच्छ भेंट को मुझ पर एक बार पुनः दया करते हुए स्वीकार कर लेना। हे मातृभूमि! तुझ पर मेरे गीत, मेरे प्राण और मेरे रक्त की एक-एक बूँदें न्यौछावर है। इनके अतिरिक्त भी यदि कोई मेरी बहुमूल्य चीज बची हो तो उसको भी मैं अपने देश पर न्यौछावर करना चाहता हूँ।
(03) भांज
दो तलवार
को लाओ न देरी,
बांध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी,
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी,
शीश पर आशीष की छाया घनेरी,
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित,
आयु का क्षण क्षण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक छत्तीसगढ़ भारती के पाठ एक "कुछ और भी दूँ" से लिया गया है। इस कविता के रचयिता श्री रामावतार त्यागी जी हैं।
प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में कवि देश रक्षा के लिये आशीर्वाद माँगते हैं।
भावार्थ– कवि कहते हैं कि, अब देर न करते हुए मुझे पैनी तलवार लाकर दे दो और मेरी कमर में कसकर ढाल बाँध दो, मेरे मस्तक पर भारत माता की धूल का तिलक लगा दो। मेरे सिर पर भारत माता के आशीर्वाद की बहुत गहरी छाया है। मेरे स्वप्न, मेरे प्रश्न और मेरी आयु का एक एक-एक पल भारत माता के चरणों में अर्पित है। इनके अतिरिक्त भी यदि कोई मेरी बहुमूल्य चीज बची हो तो उसको भी मैं अपने देश पर न्यौछावर करना चाहता हूँ।
(04) तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,
गाँव मेरे ,द्वार-घर-आँगन क्षमा दो,
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो,
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।
ये सुमन लो, यह चमन लो,
नीड़ का तृण तृण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ ।।
संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक छत्तीसगढ़ भारती के पाठ एक "कुछ और भी दूँ" से लिया गया है। इस कविता के रचयिता श्री रामावतार
त्यागी जी हैं।
प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में कवि देश रक्षा में जाने वाले युवा अपने
घर-आँगन से क्षमा
माँगते हुए पारिवारिक
मोह कोत्यागने की बात कहते हैं।
भावार्थ– कवि कहते
हैं कि, आज
मैं माया मोह के बंधन से छोड़ना चाहता हूँ। मैं अपने गाँव, घर-द्वार एवं
आँगन को देश के लिए त्यागते हुए इनसे क्षमाप्रार्थी हूँ। परन्तु देश हित इन सभी से सर्वोपरि है। आज मेरे दाएँ हाथ मे
तलवार एवं बाएँ
हाथ में तिरंगा थमा दीजिए। मैं तिरंगे की रक्षा में न्यौछावर हो जाना चाहता
हूँ। कवि कहते हैं कि मेरी सब सुविधा के प्रतीक वस्तु और साधन स्वरूप
बगिया एवं घर का एक-एक तिनका मातृभूमि पर न्यौछावर है। इनके अतिरिक्त भी यदि कोई
मेरी बहुमूल्य चीज बची हो तो उसको भी मैं अपने देश पर न्यौछावर करना चाहता
हूँ।
अभ्यास
पाठ से:
प्रश्न 1. कवि देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर क्यों करना चाहता है?
उत्तर– कवि के मन मे देशप्रेम की भावना कूट -कूट कर भरी है। वे राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत-प्रोत होकर देशहित में योगदान देने उद्देश्य से अपना सर्वस्व न्यौछावर करना चाहते हैं।
प्रश्न 2. माँ के किस ऋण की बात कवि कहते हैं?
उत्तर– कवि मातृभूमि द्वारा प्रदत्त विभिन्न प्रकार के संसाधन जो मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं और जिनके बिना मानव का जीवन संभव नहीं है जैसे: जल, धन -धान्य, फल-फूल, खनिज पदार्थ आदि इस धरती पर भरे पड़े है जिसे मातृभूमि हमें प्रदान करती है, कवि उन्ही ऋण अर्थात उपकारों की बात कर रहे हैं।
प्रश्न 3. कुछ और देने की चाहत कवि को क्यों है?
उत्तर– कवि को कुछ और देने की चाहत इसलिए है क्योंकि कवि मातृभूमि के सामने स्वयं तो तुच्छ मानते हैं और कवि के लिए लिए मातृभूमि की सेवा से बढ़कर कोई और वस्तु नहीं है।
प्रश्न 4. कवि स्वयं को अकिंचन क्यों कह रहे हैं ?
उत्तर– मातृभूमि में प्रचूर मात्रा में प्राकृतिक संपदा भरी पड़ी है। जीवन पर्यंत व्यक्ति अपनी मातृभूमि से जीवन-यापन की वस्तुएँ प्राप्त करता रहता है किंतु प्राप्त की जाने वाले संसाधनों की तुलना में मनुष्य का अस्तित्व कहीं नगण्य होता है इसलिए कवि स्वयं को अकिंचन कह रहे हैं।
प्रश्न 5. क्या स्वीकार करने का आग्रह कवि राष्ट्र माँ से कर रहे हैं?
उत्तर– सर्वोच्च बलिदान का अवसर आने पर प्राणों का उत्सर्ग स्वीकार करने का आग्रह कवि राष्ट्र माँ से कर रहे हैं।
प्रश्न 6. चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ पंक्तियों के माध्यम से कवि किन भावों को व्यक्त करना चाहते हैं?
उत्तर– "चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ" पंक्तियों के माध्यम से कवि मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देने का भाव व्यक्त करना चाहते हैं।
पाठ से आगे:
प्रश्न 1. स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित वायु का क्षण-क्षण समर्पित इस कविता को पढ़ने के बाद आपको क्या महसूस होता हैं ? यह कविता पाठ की अन्य कविताओं जैसी है या उससे अलग है अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर– स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित वायु का क्षण-क्षण समर्पित इस कविता को पढ़ने के बाद देशप्रेम की भावना जागृत होती है और ऐसा महसूस होता है कि मैं भी अपने देश की सेवा के लिए अपना योगदान दूँ।
यह कविता देशप्रेम की अन्य कविताओं के ही समान देशप्रेम की भावना जागृत करती है। साथ ही देश के समक्ष अपना सर्वस्व समर्पण करने की भावना जागृत करने की क्षमता रखती है।
प्रश्न 2. इस कविता में कवि राष्ट्र के प्रति अपना सबकुछ अर्पित करने की बात करता है। क्या आपको लगता है कि हमारे आसपास के लोग इसके लिए तैयार हैं? लिखिए।
उत्तर– इस कविता में कवि राष्ट्र के प्रति अपना सब कुछ अर्पित करने की बात करता है। हमें लगता है कि हमारे आसपास के लोग इसके लिए तैयार हैं। जब बात देशहित की आती है तब समाज के सभी वर्गों के लोग अपना व्यक्तिगत स्वार्थ भूल कर जाति-धर्म से परे देशहित में अपना सबकुछ अर्पित करने को तैयार हो जाते हैं।
प्रश्न 3. अपनी माँ और राष्ट्रमाता में आपको क्या फर्क लगता है? अगर हम सब अपनी माँ के सम्मान के प्रति उत्तरदायी हैं तो स्वाभाविक रूप में राष्ट्र माता के प्रति भी हम समर्पित होंगे। विचार कर लिखिए।
उत्तर– हमारी माता केवल अपनी संतानों का ही पालन-पोषण करती है जबकि राष्ट्र माता बिना किसी भेद-भाव के अपनी सभी संतानों का समान रूप से पालन करती है।
जिस प्रकार हम अपनी माता के उपकारों के प्रति समर्पण और सेवा भाव रखते हैं ठीक उसी प्रकार मातृभूमि के उपकारों के प्रति भी समर्पण का भाव रखना चाहिए।
प्रश्न 4. राष्ट्र के प्रति हमारे समर्पण में बाधक तत्व आपको क्या लगती हैं? साथियों के साथ विचार कर अपनी समझ को लिखिए।
उत्तर– सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, अलगाववाद, राजनीतिक और जातिगत विद्वेष, स्वार्थ की भावना, सामाजिक विद्वेष आदि राष्ट्र के प्रति हमारे समर्पण में बाधक तत्व हैं।
भाषा से:
प्रश्न 1. इस कविता में बहुत से तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है जैसे- ऋण, अंकिचन, भाल, अर्पण, चरण, ध्वज, सुमन, नीड़, तृण इन शब्दों का छत्तीसगढ़ी भाषा में क्या प्रयोग प्रचलित है उन्हें खोज कर वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर– ऋण – करजा
अंकिचन – छोटे
भाल – माथा
अर्पण – अरपन
चरण – गोड़
ध्वज - धजा
सुमन - फूल
नीड़ - चिरई झाला
तृण - घास
वाक्य प्रयोग:-
1. आजकल बर-बिहाव करे बर करजा लेहे बर परथे।।
2. दाई-ददा के उपकार के आघु हमन बहुत छोटे हन।
3. मोर माथा हर चौड़ा हे।
4. हमन भगवान ल फूल-पान अरपन करथन।
5. बाहर ले घर आए के बाद गोड़-हाथ धोना चाहिए।
6. भारत के तिरंगा धजा के सदा मान- सम्मान ल बनाये रखबो।
7. गोंदा के फूल ह हर राजकीय फूल ए।
8. सरई के पेड़ म चिरई अपन झाला बनाए हे।
9. खेत म जागे घास के निंदाई होथे।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के सही रूप को छाँटकर लिखिये उत्तर–
1. न्यौछावर/ न्योछावर
उत्तर: न्यौछावर
2. आशीश/ आशीष
उत्तर: आशीष
3. अकिंचन/ अकिंचन
उत्तर: अकिंचन
4. सवीकार/ स्वीकार
उत्तर: स्वीकार
5. स्वाभाविक/स्वभाविक
उत्तर: स्वाभाविक
6. आसय / आशय
उत्तर: आशय
7. अनुप्रास / अनुप्रास
उत्तर: अनुप्रास
8. कृतज्ञ/ कृतग्य
उत्तर: कृतज्ञ
3. प्रस्तुत कविता में तुक के रूप में त, न, और र वर्ण का बार-बार दुहराव देखने को मिलता है। जहाँ वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है, उसे हम
अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
जैसे:- गान अर्पित, प्राण अर्पित।
रक्त का कण-कण समर्पित।
पंक्ति में 'त' वर्ण का दुहराव देखा जा सकता है। पाठ में ऐसे अन्य पंक्तियों को ढूँढें जहाँ अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर: 1. मन समर्पित, तन समर्पित,
और यह जीवन समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
यहाँ 'त' वर्ण की आवृत्ति हो रही है।
2. स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित,
आयु का क्षण-क्षण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
यहाँ 'त' वर्ण की आवृत्ति हो रही है।
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It is not a summary please make summary of this
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