बिखरते सपने
तुम्हे पा लेने की जिद नहीं है मुझे मगर,
तुमसे बिछड़ने का डर जरूर है।
तुम इतनी दूर ना चले जाना कि बस ख्वाबों में ही मुलाकात हो,
बाकी तुम्हारा हर फैसला मुझे मंजूर है।।
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ना तब तुमसे कह सका,
ना अब उससे कह सकूँगा।
बड़ी मुश्किल से उबर सका हूँ
तेरी चाहत के अफसाने से।
क्यूँ छेड़ते हो
मेरी कमजोरियों के वही तराने?
जब तुम्हे पता है;
गर प्रीत लगा बैठा
तो बिन उसके फिर ना रह सकूँगा।।
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गर कल चल दिए हम,
इस फ़साने को छोड़कर हमेशा के लिए।
याद करके हमको बरसेंगी वो आँखें,
जिनकी चमक देखने हर दिन हम तड़पते हैं।।
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हर मुश्किल आसान हो जाती है,
जब हमसफ़र साथ होता है।
कब तक लड़े कोई हालात के उफनते समन्दर से,
जब अपनी परछाई ही साथ छोड़ दे मझधार में।।
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सबको खुश करते-करते,
अपना अस्तित्व ही खो बैठे हम।
खता बस इतनी हुई कि;
अपनों की इच्छाएँ कहीं अधूरी ना रह जाए,
हर कदम यह सोचकर बढ़ाया हमने।।
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अजीब है यह जिंदगी...!
कभी रंग बदला-कभी फितरत,
कभी यारी बदली-तो कभी शोहबत।
जब इतने से भी मन न भरा,
तो इसने ने मुझे ही बदल दिया।।
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जरूरत नहीं हमारी यहाँ तनिक भी,
चले जाएँगे एक दिन अच्छे लोगों की इस दुनिया से दूर।
बहुतेरे कोशिशों के बाद भी,
कमबख़्त हम किसी के काबिल न बन सके।।
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क्या कहें कि लिखने वाले ने,
क्या लिख दिया मुकद्दर हमारा।
हमने खुशियों की ओर कदम बढ़ाया और,
कमबख़्त गम सैलाब बनकर चला आया।।
©RKP

