"यह पीढ़ी"
"जय हिंद-जय श्री राम"
यूँ तो सृष्टि के विधान में हर काल की अपनी कुछ विशेषताएँ होती ही हैं, किंतु हमारी पीढ़ी बहुत अर्थ में खास है। जहाँ एक ओर हमारी पीढ़ी स्वतंत्र भारत के उस दौर की साक्षी है जब *"वैचारिक मतभेदों" ने "मनभेद"* का स्तर ग्रहण कर लिया है वहीं यह काल साक्षी है जब मतभेदों के गुबार के मध्य *"राष्ट्र को पुनः गौरवशाली स्थान पर सुशोभित करने"* समाज का हर वर्ग अपनी सहभागिता प्रदान कर रहा है।
यह दौर एक ओर जहाँ निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर *जननायकों के प्रति नवीन आस्था और विद्वेष* को समेटे हुए है वहीं दूसरी ओर *"राष्ट्रवाद"* एक नए कलेवर के साथ भारतीय समाज के सम्मुख दृष्टिगोचर है।
डेढ़ सौ करोड़ की जनसंख्या की ओर बढ़ रहे राष्ट्र के समक्ष भोजन की चिंता को जहाँ "हरित क्रांति" के दूरगामी सोंच ने समाप्त कर रखा है वहीं समाज के अंतिम व्यक्ति के आहार के लिए शासन की चिंता "अंत्योदय" आधारित लक्ष्यों की प्राप्ति के सफल प्रयासों से परिलक्षित हो रही है।
*राष्ट्रपिता गाँधी जी के स्वच्छता और स्वदेशी अभियान* की संकल्पना की ज्योति सात दशक की यात्रा के अनवरत प्रयासों के बाद आज *नए भारत* में *प्रज्वलित* दिखाई दे रही है।
स्वतंत्र भारत की यह पीढ़ी साक्षी है जब *"हमारे राष्ट्र रक्षक परमवीरों* ने राष्ट्र पर होने वाले शत्रु के घात का मुँहतोड़ उत्तर देने क्षमता का अद्भुद प्रदर्शन करते हुए गुरूओं की परम वाणी *"सवा लाख से एक लड़ाऊँ"* की संकल्पना को साकार कर दिखाया है।
*स्वतंत्र भारत नके नेतृत्व ने जहाँ "उद्योगों को देव स्थल की भाँति सम्मान* प्रदान करते हुए भारत को विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया वहीं *आज देश का सबल नेतृत्व विकसित भारत की संकल्पना* को साकार करने की ओर तीव्रता से अग्रसर है।
*स्वतंत्र भारत के नेतृत्व ने जहाँ "उद्योगों को देव स्थल की भाँति सम्मान* प्रदान करते हुए भारत को विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया वहीं *आज देश का सबल नेतृत्व विकसित भारत की संकल्पना* को साकार करने की ओर तीव्रता से अग्रसर है।
हमारे काल ने *"प्रकृति और पर्यावरण"* के प्रकोप को सुनामी के रूप में देखा वहीं *"चिपको आंदोलन और हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन"* ने *"प्रकृति है तब प्राणियों का अस्तित्व है"* की अवधारणा के लिए संघर्ष को दर्शाया है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद *ज्ञान-विज्ञान* की जो नींव रखी गई उसे वर्तमान पीढ़ी *सकारात्मक आक्रामकता के साथ कुशलतापूर्वक* संवाहित कर रहा है।
एक ओर जहाँ हमारी पीढ़ी ने *"कोरोना"* जैसी त्रासदी के दौरान *"मानव को मानव के लिए अश्पृश्यता"* का दौर देखा, वहीं *विज्ञान की दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर* पुनः राष्ट्र को दृढ़ता से खड़ा होने के सामर्थ्य का साक्षी है यह पीढ़ी।
यह पीढ़ी साक्षी है की "राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने रामराज्य के आदर्शों पर आधारित जिस लोकतंत्र" की संकल्पना प्रस्तुत किया था वह स्वतंत्रता के सात दशक तक निरन्तर प्रयासों के बाद अब लगभग डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले राष्ट्र के कुशल और सबल नेतृत्व में "साकार रूप" धारण कर रहा है।
सहस्त्रों वर्ष पुरानी *भारतीय संस्कृति* अब एक बार पुनः अपने उत्थान की ओर बढ़ रहा है। सैकड़ों वर्ष के कठिन संघर्ष के पश्चात *करोड़ों जनमानस के आराध्य और आदर्श शासन के प्रेरणास्त्रोत प्रभू श्री राम* जी के जन्म स्थान पर *"श्री रामलला के विग्रह की प्राणप्रतिष्ठा"* की मंगल बेला का साक्षी बनने का परम सौभाग्य हमारी पीढ़ी को प्राप्त हुआ है।
सचमुच...! *अद्भुद संघर्ष के साथ संस्कृति और विकास की नई गाथा लिखती हमारी पीढ़ी की राष्ट्रगाथा* हजारों वर्षों तक स्मरणीय रहेगी।
©RKP
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