पाठ-3
उपभोक्तावाद की संस्कृति
प्रश्न-अभ्यास
1- लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:- लेखक के अनुसार, जीवन में ‘सुख’ का अभिप्राय मानसिक, शारीरिक और सूक्ष्म आराम से है। वर्तमान समय में केवल उपभोग को ही सुख माना जाता है। जबकि ये मनुष्य को केवल क्षणिक सुख दे सकते हैं।
2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर:- उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारा दैनिक जीवन पूरी तरह प्रभावित हो रहा है। आज व्यक्ति उपभोग को ही सुख समझने लगा है। इस कारण लोग अधिकाधिक वस्तुओं का उपभोग कर लेना चाहते हैं। लोग बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदकर दिखावा करने लगे हैं। जिससे सामान्य मनुष्य स्वयं को आर्थिक स्तर पर कमजोर पा रहा है। इस संस्कृति से मानवीय संबंध कमजोर हो रहे हैं और अमीर-गरीब के बीच दूरी बढ़ने से समाज में अशांति और आक्रोश बढ़ रहा है।
3. लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर:- लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि उपभोक्ता संस्कृति से मानवीय संबंध कमजोर हो रहे हैं और अमीर-गरीब के बीच दूरी बढ़ने से समाज में अशांति और आक्रोश बढ़ रहा है। लेखक चाहते थे कि हम अपनी परंपराओं पर दृढ़ रहें तथा नवीन सांस्कृतिक मूल्यों को अच्छी प्रकार से जाँच-परखकर ही स्वीकार करें। हमें बिना सोचे-समझे किसी का भी अंधानुकरण नहीं करना चाहिए अन्यथा हमारा समाज पथभ्रष्ट हो जाएगा।
4. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
उत्तर:- उपभोक्तावादी संस्कृति अधिकाधिक उपभोग को बढ़ावा देती है। लोग प्रचार-प्रसार की चमक-दमक से प्रभावित होकर उपभोग को ही सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। इससे वे वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जिसका असर उनके चरित्र पर पड़ता है।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
उत्तर- लोग समाज में प्रतिष्ठा दिखाने के लिए तरह-तरह के तौर तरीके अपनाते हैं। उ नमें कुछ अनुकरणीय होते हैं तो कुछ उपहास का कारण बन जाते हैं। पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार अंतिम विश्राम हेतु-अधिक-से-अधिक मूल्य देखकर सुंदर जगह सुनिश्चित करने लगे हैं। उनका ऐसा करना नितांत हास्यास्पद है।
रचना और अभिव्यक्ति
5. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों?
उत्तर:- टेलीविज़न पर आने वाले विज्ञापन बहुत प्रभावशाली होते हैं। वे हमारी आँखों और कानों को विभिन्न दृश्यों और ध्वनियों के माध्यम से प्रभावित करते हैं। वे हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक आकर्षण उत्पन्न करते हैं और उत्पाद के गुणों को कई गुना बढ़ाकर इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि बच्चे तो बच्चे बड़े-बुजुर्ग भी झॉंसे में आ जाते हैं। ‘खाए जाओ, खाए जाओ’, ‘क्या करें, कंट्रोल ही नहीं होता’, जैसे आकर्षण हमारी लार टपका देते हैं। इसलिए अनुपयोगी वस्तुएँ भी हमें लालायित कर देती हैं।
6. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:- वस्तुओं को खरीदने का आधार हमारी आवश्कता के अनुरूप उसकी गुणवत्ता होनी चाहिए न कि विज्ञापन। इस संबंध में कबीर की उक्ति पूर्णतय: सटीक बैठती है कि- ‘मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान।’ विज्ञापन हमें वस्तुओं की विविधता, मूल्य, उपलब्धता आदि का ज्ञान तो कराते हैं परंतु उनकी गुणवत्ता का ज्ञान हमें अपने विवेक से करके ही आवश्यकतानुसार वस्तुएँ खरीदनी चाहिए।
7. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:- आज दिखावे की संस्कृति पनप रही है। यह बात बिल्कुल सत्य है। इसलिए लोग उन्हीं चीजों को अपना रहे हैं, जो दुनिया की नजरों में अच्छी हैं। सारे सौंदय-प्रसाधन मनुष्यों को सुंदर दिखाने के ही प्रयास करते हैं। पहले यह दिखावा औरतों में होता था, आजकल पुरुष भी इस दौड़ में आगे बढ़ चले हैं। नए-नए परिधान और फैशनेबल वस्त्र दिखावे की संस्कृति को ही बढ़ावा दे रहे हैं।
आज लोग समय देखने के लिए घड़ी नहीं खरीदते, बल्कि अपनी हैसियत दिखाने के लिए हजारों क्या लाखों रुपए की घड़ी पहनते हैं। आज हर चीज पाँच सितारा संस्कृति की हो गई है। खाने के लिए पाँच-सितारा होटल, इलाज के लिए पाँच सितारा हस्पताल, पढ़ाई के लिए पाँच सितारा सुविधाओं वाले विद्यालये-सब जगह दिखावे का ही साम्राज्य है। यहाँ तक कि लोग मरने के बाद अपनी कब्र के लिए लाखों रुपए खर्च करने लगे हैं ताकि वे दुनिया में अपनी हैसियत के लिए पहचाने जा सकें। विज्ञापन हमें वस्तुओं की विविधता, मूल्य, उपलब्धता आदि का ज्ञान तो कराते हैं परंतु उनकी गुणवत्ता का ज्ञान हमें अपने विवेक से करके ही आवश्यकतानुसार वस्तुएँ खरीदनी चाहिए।
यह दिखावा-संस्कृति मनुष्य को मनुष्य से दूर कर रही है। लोगों के सामाजिक संबंध घटने लगे हैं। मन में अशांति जन्म ले रही है। आक्रोश बढ़ रहा है, तनाव बढ़ रहा है। हम लक्ष्य से भटक रहे हैं। यह परिवारों में बिखराव का कारक बन रहा है। यह अशुभ है। इसे रोका जाना चाहिए।
8. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:- आज की उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाव से हमारे रीति-रिवाज और त्योहार अछूते नहीं रहे। हमारे रीति-रिवाज और त्योहार सामाजिक समरसता बढ़ाने वाले, वर्ग भेद मिटाने वाले सभी को उल्लासित एवं आनंदित करने वाले हुआ करते थे, परंतु उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से इनमें बदलाव आ गया है। इससे त्योहार अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। आज रक्षाबंधन के पावन अवसर पर बहन भाई द्वारा दिए गए उपहार का मूल्य आंकलित करती है। दीपावली के त्योहार पर मिट्टी के दीए प्रकाश फैलाने के अलावा समानता दर्शाते थे परंतु बिजली की लड़ियों और मिट्टी के दियों ने अमीर-गरीब का अंतर स्पष्ट कर दिया है। यही हाल अन्य त्यौहारों का भी है। वास्तव में उपभोक्तावादी संस्कृति अधिकाधिक उपभोग को बढ़ावा देती है। लोग प्रचार-प्रसार की चमक-दमक से प्रभावित होकर उपभोग को ही सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। इससे वे वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जिसका असर उनके चरित्र पर पड़ता है।
भाषा-अध्ययन
9. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
(‘धीरे-धीरे रीतिवाचक क्रिया-विशेषण) (सब-कुछ ‘परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण’)
2. आपको लुभाने की जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है।
(‘निरंतर’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
3. सामंती संस्कृति के तत्त्वे भारत में पहले भी रहे हैं।
(‘पहले’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)
4. अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है।
(आज, कल कालवाचक क्रिया-विशेषण)
5. हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है।
(परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)
(ख) धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों को प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर: धीरे-धीरे – उपभोक्तावाद की संस्कृति धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल चुकी है।
जोर-से– अचानक यहाँ जोर-से विस्फोट हुआ।
हमेशा– चोरी और बेईमानी हमेशा नहीं चलती।
आजकल– आजकल विज्ञापनों का जोर पकड़ता जा रहा है।
कम– भारत में बाघों की संख्या कम हो चुकी है।
ज्यादा– छत्तीसगढ़ में धान का उत्पादन ज्यादा होता है।
यहाँ– तुम यहाँ आकर बैठो।
उधर– मैंने जानबूझकर उधर नहीं देखा।
बाहर– तुम चुपचाप बाहर चले जाओ।
(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-
उत्तर- 1) निरंतर, (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
2) पके (विशेषण)
3) हलकी (विशेषण) कल रात कल रात (कालवाचक क्रियाविशेषण) जोरों की (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
4) उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण) मुँह में (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
5) आजकल (कालवाचक क्रिया-विशेषण) बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
पाठेतर-सक्रियता
10. दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं के अनुभव से लिखें।
11. इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें।
क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है?
उत्तर- विद्यार्थी शिक्षक के सहयोग से लिखें।
12. आप प्रतिदिन टी.वी. पर ढेरों विज्ञापन देखते-सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी जबान पर चढ़ जाते हैं। आप अपनी पसंद की किन्ही दो वस्तुओं पर विज्ञपन तैयार कीजिए।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं के अनुभव से लिखें।
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