|ॐ नमः शिवाय|
श्री अमरनाथजी यात्रा
परिचय:-
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पवित्र तीर्थ श्री अमरनाथजी की खोज के पीछे एक रोचक कहानी छिपी है। सदियों पहले माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से पूछा कि उन्हें बताएँ कि उन्होंने मुंड माला क्यों और कब पहनना शुरू किया? माता पार्वती की इस जिज्ञास पर भोलेशंकर ने उत्तर दिया, "जब भी तुम्हारा अवतार होता है, मैं अपनी माला में एक और मुंड जोड़ लेता हूं"। माता पार्वती ने कहा, "मैं बार-बार मरती हूँ, लेकिन आप अमर हैं। कृपया मुझे इसके पीछे का कारण बताएँ"। "भोलेशंकर ने उत्तर दिया कि इसके लिए तुम्हें अमरकथा सुननी होगी।" भगवान शिव ने माता पार्वती को विस्तृत कहानी सुनाने के लिए ऐसे एकांत स्थान पर गए जहाँ कोई भी जीवित प्राणी अमर रहस्य को नहीं सुन सकता था और इस कार्य के लिए उन्होंने अमरनाथ गुफा को चुना।
इस कार्य हेतु
जाते समय उन्होंने अपने नंदी (जिस बैल पर वे सवारी करते थे) को पहलगाम में छोड़
दिया। चंदनवाड़ी में, उन्होंने अपने बालों (जटाओं) से चंद्रमा (चांद) को मुक्त
किया। शेषनाग झील के तट पर, उन्होंने साँपों को छोड़ दिया।
उन्होंने अपने पुत्र गणेश को महागुणा पर्वत पर छोड़ने का फैसला किया। पंजतरणी में
शिवजी ने पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु,
अग्नि और आकाश) को पीछे छोड़ दिया जो जीवन को जन्म देते हैं और
जिनके वे स्वामी हैं। इन सभी को पीछे छोड़ने के बाद, भोलेशंकर
ने माता पार्वती के साथ पवित्र अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और समाधि ले ली। यह
सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी जीवित प्राणी अमर कथा को सुनने में सक्षम न हो,
उन्होंने कालाग्नि को उत्पन्न किया और उसे पवित्र गुफा में और उसके
आसपास हर जीवित प्राणी को नष्ट करने का आदेश दिया। इसके बाद उन्होंने माता पार्वती
को अमरता का रहस्य बताना शुरू किया। लेकिन संयोग से कबूतरों के एक जोड़े ने कहानी
को सुन लिया और अमर हो गए। कई तीर्थयात्री आज भी पवित्र तीर्थस्थल पर कबूतरों के
जोड़े को देखने का उल्लेख करते हैं और आश्चर्यचकित होते हैं कि ये पक्षी इतने
ठंडे और ऊँचाई वाले क्षेत्र में कैसे जीवित रहते हैं।
पवित्र गुफा:-
श्री अमरनाथजी को प्रमुख हिंदू धामों में से एक माना जाता है। पवित्र गुफा भगवान शिव जी का निवास स्थान है। परमपिता परमेश्वर भगवान शिव इस गुफा में बर्फानी स्वरूप में विराजमान हैं। यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है मान्यता है कि यह चंद्रमा की कलाओं के साथ घटता-बढ़ता रहता है।
लिद्दर घाटी के सुदूर छोर पर एक संकरी घाटी में स्थित श्री अमरनाथजी तीर्थस्थल 3,888 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जो पहलगाम से 46 किलोमीटर और बालटाल से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्रीनगर से लगभग 96 किलोमीटर की दूरी पर पहलगाम स्थित है। लिद्दर नदी के किनारे बसा यह मनोरम स्थल श्री अमरनाथ जी यात्रा के पारंपरिक मार्ग के आधार शिविर के रूप में जाना जाता है।
आधुनिक काल में गुफा की खोज:-
प्राचीन महाकाव्यों में एक और कहानी कही गई है। कश्मीर की घाटी जलमग्न थी। यह एक बड़ी झील थी। कश्यप ऋषि ने कई नदियों और नालों के माध्यम से पानी निकाला। उन दिनों भृगु ऋषि हिमालय की यात्रा पर इसी रास्ते से आए थे। वे इस पवित्र गुफा के दर्शन करने वाले पहले व्यक्ति थे। जब लोगों ने शिवलिंग के विषय में सुना, तो अमरनाथ पवित्र तीर्थस्थल बन गया। तब से लाखों भक्त कठिन इलाकों से होकर तीर्थयात्रा करते हैं और शाश्वत सुख प्राप्त करते हैं। श्रावण (जुलाई-अगस्त) के महीने में अमरनाथ की यात्रा पर भक्त इस अविश्वसनीय तीर्थस्थल पर आते हैं, जहाँ शिव की छवि, एक लिंगम के रूप में, बर्फ के एक स्तंभ से प्राकृतिक रूप से बनती है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह चंद्रमा के चक्र के साथ बढ़ता और घटता है। इसके बगल में दो और बर्फ के लिंगम हैं, जो माता पार्वती और उनके पुत्र गणेश के हैं।
वैसे तो पवित्र गुफा के अस्तित्व का उल्लेख पुराणों में किया गया है, लेकिन आधुनिक समय में इस पवित्र गुफा की खोज के बारे में लोगों द्वारा सुनाई जाने वाली लोकप्रिय कहानी एक चरवाहे बूटा मलिक की है। कहानी कुछ इस प्रकार है, एक संत ने बूटा मलिक को कोयले से भरा एक थैला दिया। अपने घर पहुँचकर जब उसने थैला खोला तो उसे आश्चर्य हुआ कि थैला सोने के सिक्कों से भरा था। यह देखकर वह खुशी से झूम उठा। वह संत का धन्यवाद करने के लिए दौड़ा। लेकिन संत गायब हो चुके थे। इसके बजाय, उसे पवित्र गुफा और उसमें बर्फ का शिवलिंग मिला। उसने गाँव वालों को इस खोज की घोषणा की। तब से यह तीर्थस्थल एक पवित्र स्थान बन गया।
कैसे पहुँचें?
पवित्र अमरनाथजी तीर्थस्थल हिमालय में स्थित है। कश्मीर पहुँचने केलिए ट्रेन,सड़क मार्ग और हवाई मार्ग की सुविधा उपलब्ध है। श्रीनगर निकटस्थ हवाई अड्डा है। अब ट्रेन् की सुविधा भी और अधिक नजदीक आ गई है। कश्मीर पहुँचने के बाद दो मार्गों से यहाँपहुँचा जा सकता है। लगभग 32 किमी लम्बा पहलगाम मार्ग या लगभग 14 किमी की दूरी वाला बालटाल मार्ग। बालटाल मार्ग के लिए यात्रा आधार शिविर गांदरबल जिले में बालटाल (सोनमर्ग के पास) में स्थित है। बालटाल सड़क मार्ग से श्रीनगर से लगभग 95 किमी दूर है। पहलगाम मार्ग के लिए यात्रा आधार शिविर अनंतनाग जिले में नुनवान (पहलगाम के पास) में स्थित है। नुनवान सड़क मार्ग से श्रीनगर से लगभग 96 किमी दूर है। बालटाल मार्ग पर यात्रा प्रवेश नियंत्रण द्वार दोमेल (बालटाल से लगभग 2.5 किमी की दूरी पर) में स्थित है। लिद्दर नदी के किनारे बसा यह मनोरम स्थल श्री अमरनाथ जी यात्रा के पारंपरिक मार्ग के आधार शिविर के रूप में जाना जाता है। पहलगाम मार्ग पर यात्रा प्रवेश नियंत्रण द्वार चंदनवाड़ी (नुनवान से लगभग 16 किमी की दूरी पर) में स्थित है। जम्मू और श्रीनगर साल भर सड़क/रेल/हवाई संपर्क में रहते हैं।
आगे हम दोनों मार्गों के विषय में विस्तारपूर्वक जानेंगे।
पवित्र गुफा कैसे पहुँचें?
पहलगाम से पवित्र गुफा:-
इस मार्ग से जाने के दो विकल्प हैं:-
क. जम्मू-पहलगाम-पवित्र गुफा:-
जम्मू से पहलगाम 315 किमी की दूरी टैक्सी/बसों द्वारा पूरी की जा सकती है, जो पर्यटक स्वागत केंद्र, जम्मू और कश्मीर सरकार, रघुनाथ बाज़ार में सुबह-सुबह ही उपलब्ध होती हैं। दूसरा विकल्प हवाई मार्ग से श्रीनगर जाना और फिर सड़क मार्ग से पहलगाम जाना है।
ख. श्रीनगर-पहलगाम-पवित्र गुफा:-
श्रीनगर से लगभग 96 किमी दूर पहलगाम की यात्रा टैक्सी/बसों द्वारा पूरी की जा सकती है। पहलगाम अपनी खूबसूरती के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है।
पहला पड़ाव-पहलगाम नुनवान आधार शिविर(बेस कैम्प):-
पहलगाम पवित्र गुफा के लिए पहला पड़ाव है। लिद्दर और अरु नदियां और ऊँचे पहाड़ घाटी को चूमते हैं। ठहरने के लिए अच्छे होटल उपलब्ध हैं। पहलगाम से 6 किलोमीटर पहले नुनवान यात्री कैंप में गैर सरकारी संगठनों द्वारा नि:शुल्क लंगर की व्यवस्था भी की जाती है। तीर्थयात्री पहली रात के लिए पहलगाम में डेरा डालते हैं।
नियंत्रण द्वार (एक्सेस कण्ट्रोल गेट) चंदनबाड़ी:-
पहलगाम से चंदनवाड़ी की दूरी 16 किलोमीटर है। पहलगाम से पवित्र गुफा के मार्ग में नुनवान बेस कैम्प से प्रतिदिन प्रात: यात्रियों का जत्था वाहनों से प्रस्थान करते हैं। पहलगाम से चंदनवाड़ी तक पहुँचने के लिए मिनी बसें चलती हैं। यह मार्ग लिद्दर नदी के किनारे-किनारे चलता है, जहाँ से शानदार प्राकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं। रास्ते में प्रसिद्ध बेताब वैली (हज़ान घाटी) के मनमोहक दृश्य यात्रियों के मन मोह लेते हैं। यहाँ कई लंगर हैं जो यात्रियों को भोजन उपलब्ध कराते हैं।
पिस्सू टॉप:-
चंदनवाड़ी से यात्रा आगे बढ़ने पर पिस्सू टॉप पर पहुँचने के लिए ऊँचाई पर चढ़ना पड़ता है। कहा जाता है कि भोलेनाथ शिवशंकर के दर्शन के लिए सबसे पहले पहुँचने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हुआ था। शिव की शक्ति से देवताओं ने इतनी बड़ी संख्या में राक्षसों को मार डाला कि उनकी लाशों का ढेर इस ऊँचे पहाड़ पर लग गया।
चंदनवाड़ी से पिस्सू टॉप का लगभग 2.5 किलोमीटर के पुराने मार्ग को 2024 की यात्रा के समय से केवल घोड़ों/खच्चारों की सहायता से यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए खोला जा रहा है जबकि पैदल यात्रियों के लिए एक नए और सुगम मार्ग को विकसित किया गया है।
शेषनाग:-
पिस्सू टॉप से आगे चलने पर जोजीबल और नागाकेोटी होते हुए यात्रा मार्ग के दूसरे पड़़ाव शेषनाग तक पहुँचा जाता है। पिस्सू टॉप और जोजीबल में भी यात्रियों के लिए लंगर की व्यवस्था प्रभू के सेवकों के द्वारा की जाती है। इस मार्ग पर स्थान-स्थान यात्रियों की सुविधा का सम्पूर्ण ध्यान रखते हुए श्राईन बोर्ड और सुरक्षा बलों के जवानों के द्वारा किसी भी आपात स्थिति से निपटने की व्यस्था की जाती है।
रास्ते में कई झरने और पिघलते हुए ग्लेशियर्स को नदियों का रूप लेते देखा जा सकता है। हिमालय की वादियों में चलते हुए जीवन के परमसुख की अनुभूति की जा सकती है।
शेषनाग वास्तव में एक पर्वत है जिसका नाम इसकी सात चोटियों से लिया गया है, जो पौराणिक साँप के सिर की तरह दिखती हैं। शेषनाग में दूसरी रात का आधार शिविर है। यहॉं शेषनाग झील के गहरे नीले पानी और उससे आगे के ग्लेशियरों को देख जा सकता है। शेषनाग से जुड़ी प्रेम और प्रतिशोध की किंवदंतियाँ भी हैं, और शिविर में इन्हें कैम्पफ़ायर के ज़रिए सुनाया जाता है। हिमालय की रात की शांति आपके भीतर के आनंद को बढ़ाती है। इस झील में आप एक बार जब स्नान करते हैं और सुंदर दृश्य का आनंद लेते हैं, तो जीवन पूरी तरह से एक नया अर्थ ले लेता है।
महागणेश टॉप:-
यात्र के दूसरे पड़ाव को पार करते हुए अगले दिन सुबह शेषनाग से 4.6 किलोमीटर तक 4276 मीटर (14000 फीट) की खड़ी चढ़ाई करके महागुणस दर्रे को पार करना होता है। महागणेश टॉप इस यात्रा मार्ग का सर्वाधिक ऊँचाई वाला स्थान है।
ठंडी और कठोर हवाओं के कारण यह दृढ़ता से अनुशंसा की जाती है कि यात्री अपने साथ ऊनी कपड़े और वैसलीन का डिब्बा अवश्य रखें। कुछ यात्री ऑक्सीजन की कमी से भी प्रभावित होते हैं। कुछ को उल्टी की अनुभूति हो सकती है। सूखे मेवे, खट्टे और मीठे खाद्य पदार्थ जैसे नींबू इन लक्षणों को नियंत्रित करते हैं, लेकिन आपात स्थिति में निकटतम चिकित्सा सहायता केन्द्रों से तुरंत संपर्क करना सबसे अच्छा है। महागणेश टॉप का मार्ग छोटी नदियों, झरनों और झरनों से भरा है। यहॉं कुछ समय विश्राम के बाद यात्री पोषपत्री होते हुए पंजतरणी की ओर प्रस्थान करते हैं।
पंजतरणी:-
महागणेश टॉप से नीचे उतरते हुए 3657 मीटर (12000 फीट) की ऊँचाई पर पंजतरणी के घास के हैं। पंजतरणी में भैरव पर्वत के चरणों में, पाँच नदियाँ बहती हैं। यह यात्रा का अगला पड़ाव है। रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन प्रात: 4बजे पवित्र गुफा दर्शन की यात्रा प्रारंभ होती है।
हेलीकॉप्टर से यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए पंजतरणी में हैलीपैड भी बनाया गया है। जहॉं पहलगाम और बालटाल दोनों मार्ग के यात्री इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। यहॉं भी लंगर इत्यादि की नि:शुल्क व्यवस्था है।
पवित्र गुफा:-
पंजतरणी से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर पवित्र गुफा स्थित है। इस रास्ते में अमरावती और पंजतरणी नदियों का संगम आता है। कुछ तीर्थयात्री दर्शन के लिए जाने से पहले पवित्र गुफा के पास अमरावती में स्नान करते हैं। वहाँ दो छोटे शिवलिंग हैं, एक माँ पार्वती का और दूसरा श्री गणेश के स्वरूप माने जात हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि पवित्र गुफा में शिवलिंग के सुबह दर्शन करने के बाद, आप उसी दिन समय पर पंजतरणी वापस आ सकते हैं। अथवा बालटाल के मार्ग से वापसी कर सकते हैं।
2. बालटाल मार्ग:-
बालटाल मार्ग से यात्रा के लिए सर्वप्रथम जम्मू या श्रीनगर से बालटाल पहुँचना होता है। यहॉं से हैलीकॉप्टर के द्वारा यात्रा करने वाले यात्री नीलग्रथ से इस सुविधा का उपभोग करते हैं और पैदल यात्री लगभग 14 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई का चढ़ते हुए पवित्र गुफा में दर्शन करते हैं।
पवित्र गुफा से लगभग 2.5 किलोमीटर पहले संगम टॉप आता है जहॉं पंजतरणी की ओर से आने वाला मार्ग और बालटाल की ओर आने वाले मार्ग का संगम है।
यात्रा की तैयारी:-
श्राइन बोर्ड द्वारा यात्रा की तिथियों की घोषणा के बाद बोर्ड की वेबसाइट पर जारी चिकित्सा प्रमाण-पत्र को अधिकृत चिकित्सक से प्रमाणित कराते हुए अधिकृत बैंक अथवा बोर्ड की वेबसाइट https://jksasb.nic.in/ से ऑनलाइन पंजीकरण कराना होता है। पंजीकरण के साथ ही यात्रा की तिथि भी चयन करना होता है।
पंजीकरण फार्म तथा चिकित्सा प्रमाण-पत्र को सुरक्षित रखते हुए यात्रा प्रारंभ करने की तिथि से एक दिवस पूर्व निर्धारित काउंटर से RFID Card बनवाने और एक्सेस कण्ट्रोल गेट पर जॉंच के बाद ही के बाद ही बेस कैम्प में प्रवेश मिलता है और यात्रा की अनुमति प्राप्त होती है। RFID Card जारी करने वाले स्थानों की सूची बोर्ड के वेबसाइट पर उपलब्ध होती है। आमतौर पर यह श्रीनगर में पंथा चौक स्थित शिविर स्थल या एक्सेस कण्ट्रोल गेट में प्रवेश से पूर्व अन्य शिविर स्थल पर उपलब्ध होती है।
आमतौर पर शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और 14 से 70 वर्ष के यात्रियों को ही यात्रा की अनुमति होती है। यात्रियों की सुविधा के लिए बोर्ड द्वारा समय-समय पर सलाह जारी की जाती है, जिसे बोर्ड की बेवसाइट https://jksasb.nic.in/Yatra-Advisory.html पर देखा जा सकता है।
सामान साथ रखें?
यात्रा के दौरान बेहद कम और अति आवश्यक सामग्री ही साथ रखना चाहिए। इनमें लोअर, टी-शर्ट, हल्के तथा गर्म कपड़े, एक रैन कोट, आवश्यक दवाईयॉं, कोल्ड क्रीम, कुछ ड्रायफ्रूट्स, टॉर्च, तौलिया इत्यादि एक छोट बैग में रखना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि यात्राके दौरा 14000 फीट की ऊँचाई तक चढ़ना होता है। इस आधार पर न्यून और बेहद जरूरी सामान ही साथ रखना चाहिए। सनग्लास का चश्मा, एक वाकर या डंडा राह की कठिनाईयों को आसान बना देते हैं।
अन्य भ्रमण योग्य स्थल:-
जब भी बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए पीुँचें तो यात्रा के दौरान लालचौक, गुलमर्ग, सोनमर्ग, डलझील, मुगल गार्डन, शंकराचार्य जैसे स्थलों का आनंद अवश्य लेना चाहिए।
बाबा बर्फानी की दर्शन यात्रा के पश्चात कटरा पहुँच कर माता वैष्णो देवी के दर्शन नहीं किए तो यह यात्रा अधूरी ही समझ लीजिए।
यह आलेख कैसा लगा? इस पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। फिर मिलते हैं एक नए आलेख के साथ। तब तक के लिए...!
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Shri Amarnath Ji Yatra Guide
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