ख्वाहिशें
क्या कहें कि दिल में हमारे क्या है...!
कुछ आरज़ू हैं...कुछ शिकायतें...और तुम...!
दिल में क्या है...!
हर खुशी-हर गम से है लबरेज़ यह दिल...!
ख्वाहिशों का समन्दर समेटे,
जाने क्या चाहता है यह दिल....!
दिल का क्या है...!
दिल तो उसे चाहता है...दिल तो तुम्हे चाहता है...!
पता है इसे...!
कि चाँद-सितारों को पाना मुमकिन नहीं...!
यदि कहीं हो भी तो परीलोक में जाना मुमकिन नहीं...!
फिर भी...!
ख्वाहिशों के समंदर में बस डूबा है यह दिल...!
ख्वाहिशों का क्या है...!
ख्वाहिशें हैं बहुत मगर,
कमबख़्त साँसों का ही भरोसा नहीं।
जितनी तमन्नाएँ हैं आज-अभी पूरी कर लें,
ना जाने कल रहें-ना-रहें हम...!
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©RKP