क्षणभंगुर जीवन
जीवन की ये धूप-छाँव है,
क्षण में हँसी-क्षण में घाव है।
फूलों-सी मुस्कान लाकर,
साँसें फिर ले जाती नाव है।
कल जो था-वो आज नहीं है,
रूप क्षणिक-रंग क्षणिक है।
जग में हम बस यात्री हैं,
मंज़िल की पहचान नहीं है।
पल भर का ये मेला है,
माटी में मिल जाने का हर खेला है।
सपनों का ताना-बाना बुनकर,
समय सब कुछ ले चला है।
जो आया है, वो जाएगा,
क्षणिक रंगमंच सजेगा।
अहम् मिटेगा, नाम बिसर जाएगा,
बस कर्मों का दीप जलेगा।
तो क्यों न इस क्षण को जिएँ,
प्रेम-करुणा से मन का उपवन सीचें।
अस्तित्व जब मद्धम हो जाए,
कोशिश हो कि;
हमारी यादों का दीपक अपनी लौ न खो पाए।
😔
©RKPal