सफ़र बस इतना सा था
सफ़र बस इतना सा था,
साथ बस इतना सा था।
कदम कुछ दूर तक बढ़े,
फिर रुक गए,
नज़रों ने ही आगे का
रास्ता पढ़ लिया।
हवा में बिखरी बातें,
मुस्कान के कुछ टुकड़े,
दिल में अनकहे एहसास,
सब गवाह बन गए।
कभी ठहरी नज़र में थी,
कभी चलती हवा में थी,
ज़िंदगी के सफ़र में
बस यही दास्ताँ थी।
सफ़र बस इतना सा था,
साथ बस इतना सा था।
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RKP