*बरसों बीते*
बरसों बीते;
वे पल... जो कहीं छूट गये,
वे पल... जो फिर कभी न मिल सकेंगे।
दिल को छू जाने वाले वो एहसास,
जैसे रात की ख़ामोशी में
गूँजता कोई अधूरा गीत।
वो मासूम मुस्कानें,
वो तुम्हारी बेफ़िक्र हँसी,
तुम्हारी आँखों की वो चमक—
सब यादों के आईने में
जगमगाते हैं अब भी।
समय की धूल ने चाहे ढँक दिया हो सब कुछ,
पर मन के कोनों में
वे क्षण अब भी साँस लेते हैं।
जैसे मुरझाए फूलों में भी
सुगंध बची रहती है,
वैसे ही गुज़रे लम्हों की
गरमाहट अभी तक इस दिल में धड़कती है।
आज भी जब हवा छूती है चेहरे को,
तो लगता है—
जैसे तुम्हारा आँचल लहरा रहा हो।
पर हक़ीक़त जानती है रूह—
वे पल लौट कर कभी न आएँगे,
बस यादों की रागिनी बनकर
इस दिल में कहीं संगीत-सा बजते रहेंगे।
✍️ राज कुमार पाल